अंजान (अ)परिचिता
सिमटती दूरियांहै मृग-मरीचिका
कर पाओगी परिचय
मेरे आवरण रहित रूप से???
व्यक्तित्व विकलांग एक
अपूर्ण इतना कि
लगे अपूणर्ता बोनी
एक पत्थर रास्ते का
तत्पर
गिरे टकराकर की कोई
रूप अनेक
छलावा है की कोई
समानता भी
मात्र बुराई की
एक ईमारत
नीवं कहाँ ?
करोगे क्या ढूँढने में सहायता
तय करके २९ कलेंडर
पाया क्या ...
घना अँधेरा !
कहाँ से कहाँ ....
घुटने पर चलना
पाई अचानक
लाठी हाथ में...
बदरंग बहुत
कल्पनाएँ इन्द्रधनुषी
छू के देखो तो नज़रे झुक जाये...
सुंदर सा
पत्थर अन्घदा अन्घडा
छुपी उसमे
एक विकृत प्रतिमा..
एक प्रतिबिम्ब का बिम्ब
करे विलाप
पूछो तो क्यों ?
मिटा दूं निशान कदमो के
कि कर अनुसरण
कोई न बन जाये अपररूप मेरा...
विकर्षण स्वयं का स्वयं से
आकर्षित वो
चुम्बकत्व तो नहीं...
करीब आओ
कह दूं
एक बात ...............